
नवरात्र
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नवरात्र शक्ति-उपासना का महान उत्सव
भारतीय संस्कृति में नवरात्र का विशेष स्थान है। नवरात्र का शाब्दिक अर्थ है “नौ रातें” — यह पर्व माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना, भक्ति और साधना का समय है। नवरात्र केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, संयम और नारी–शक्ति के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का पवित्र अवसर भी है। देश के विभिन्न प्रदेशों में इसे विभिन्न रीति-रिवाजों और लोकाचारों के साथ मनाया जाता है, पर मूल भाव सर्वत्र समान शक्ति की पूजा और अधर्म का नाश है।
नवरात्र के उल्लेख प्राचीन पुराणों और ग्रंथों में मिलते हैं — जैसे मार्कण्डेय पुराण (जिसमें दुर्गासप्तशती/देवीनामाष्टोत्तरशत् का वर्णन है), शिवपुराण, कालिका पुराण आदि। इन ग्रंथों के अनुसार महिषासुर नामक अत्याचारी राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया था। तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपनी-अपनी शक्तियाँ मिलाकर आदिशक्ति की स्थापना की। माँ दुर्गा ने नौ दिन-रात तक युद्ध कर महिषासुर का वध किया; दशवें दिन विजय प्राप्त होने पर उसे विजयादशमी या दशहरा कहा गया।
रामायण के अनुसार भी भगवान श्रीराम ने रावण वध से पहले नवरात्र में माता की उपासना की थी और उनकी कृपा से विजय प्राप्त हुई। इसलिए नवरात्र विजय और धर्म-स्थापना का प्रतीक भी है।
- स्त्री-शक्ति की उपासना: नवरात्र में माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा कर स्त्री-शक्ति (शक्ति-आदिशक्ति) का सम्मान किया जाता है।
- आत्मिक शुद्धि: उपवास, जप, ध्यान और संयम से मन-मस्तिष्क शुद्ध होते हैं; यह आत्मनिरीक्षण और आध्यात्मिक उन्नति का समय है।
- ऋतु-परिवर्तन के अनुरूप: चैत्र (वसंत) व शारदीय (शरद) नवरात्र ऋतु-परिवर्तन के पास आते हैं — इस समय सात्विक आहार व विरत शरीर को सामंजस्य देता है।
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारण: भक्ति-गीत, गरबा-डांडिया और सामूहिक उत्सव समुदाय में मेल-जोल और सांस्कृतिक चेतना जगाते हैं।
- चैत्र नवरात्र: मार्च-अप्रैल (वसंत ऋतु) रामनवमी से जुड़ा हुआ।
- शारदीय नवरात्र: सितंबर-अक्टूबर (शरद ऋतु) — सर्वाधिक प्रतिष्ठित और व्यापक रूप से मनाया जाता है।
- गुप्त/अन्य नवरात्र: कुछ अन्य मासों में तांत्रिक या निजी साधनाओं हेतु भी नवरात्र आते हैं।
- प्रथम दिन - शैलपुत्री = स्थिरता, धैर्य और पार्वतीत्व का प्रतीक।
- द्वितीय दिन - ब्रह्मचारिणी = तप, संयम और साधना का स्वरूप।
- तृतीय दिन - चंद्रघंटा = साहस, निश्छलता और भय-रहितता का आशीर्वाद।
- चतुर्थ दिन - कूष्मांडा = स्वास्थ्य, ऊर्जा और सृष्टि-शक्ति की देवी।
- पंचम दिन - स्कंदमाता = मातृत्व, करुणा और पालन-पोषण की देवी।
- षष्ठम दिन - कात्यायनी = अंकुश व धारदार शक्ति, अधर्म के विरुद्ध साहस।
- सप्तम दिन - कालरात्रि = अंधकार का नाश करने वाली, रूद्रावतार।
- अष्टम दिन - महागौरी = पवित्रता, शुद्धता और सौम्यता का रूप।
- नवम दिन - सिद्धिदात्री = सिद्धि, ज्ञान और पूर्णता प्रदान करने वाली।
नोट: इन रूपों के नाम व विवरण क्षेत्रीय परंपराओं में हल्का-सा भिन्न हो सकते हैं, पर मूल भाव समान रहता है।
- घट-स्थापना (कलश स्थापना): कलश में जल, सुपारी, सिक्के, अक्षत और नारियल रखा जाता है; कलश को माँ का प्रतीक माना जाता है।
- प्रतिदिन पूजा-आरती: देवी के दिन-विशेष रूप की पूजा, दीपक-आरती और पुष्प-नैवेद्य अर्पित करना।
- भजन-सत्संग एवं पाठ: दुर्गासप्तशती, देवीभागवत या अन्य देवी-स्तोत्रों का पाठ/जाप।
- व्रत/उपवास: कई भक्त पूरे नौ दिन उपवास रखते हैं (फलाहार, दूध-सूखे मेवे या केवल जल आदि)।
- कन्या-पूजन: अष्टमी/नवमी पर छोटी कन्याओं को देवी का रूप मानकर भोजन करवाना।
- हवन/यज्ञ: विशेष हवन-यज्ञ जिनमें सामूहिक रूप से शक्ति-आराधना की जाती है।
- कर्म और विचारों में शुद्धता, हिंसा-त्याग और सात्विक आचरण।
- नवरात्र में लाल, पीला या श्वेत रंग का विशेष महत्व।
- कुछ वस्तुओं (मांस, अंडा, शराब, लहसुन-प्याज आदि) का परहेज़।
- तांत्रिक/गुप्त साधनाओं में विशेष नियम गुरु-शिष्य परंपरा अनुसार।
- आध्यात्मिक लाभ: मन की शान्ति, ध्यान-स्थिरता और आत्मिक बल।
- मानसिक-भावनात्मक लाभ: भय, तनाव और नकारात्मक विचारों में कमी; आत्मविश्वास में वृद्धि।
- भौतिक लाभ: घर-परिवार में समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-शांति।
- सामाजिक लाभ: समुदाय में मेल-जोल, सहयोग और सांस्कृतिक चेतना का विकास।
(इन फलों का अनुभव व्यक्तिगत श्रद्धा, निष्ठा और साधना की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।)
इस वर्ष शारदीय नवरात्र का आरम्भ सोमवार, 22 सितम्बर 2025 से होगा।
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